बुधवार

पढ़ना-लिखना सीखो




                         
पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो 
पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो 

क ख ग घ को पहचानो 
अलिफ़ को पढ़ना सीखो 
अ आ इ ई को हथियार 
बनाकर लड़ना सीखो 

ओ सड़क बनाने वालो, ओ भवन उठाने वालो 
खुद अपनी किस्मत का फैसला अगर तुम्हें करना है 
ओ बोझा ढोने वालो ओ रेल चलने वालो 
अगर देश की बागडोर को कब्ज़े में करना है  

क ख ग घ को पहचानो 
अलिफ़ को पढ़ना सीखो 
अ आ इ ई को हथियार 
बनाकर लड़ना सीखो 

पूछो, मजदूरी की खातिर लोग भटकते क्यों हैं? 
पढ़ो,तुम्हारी सूखी रोटी गिद्ध लपकते क्यों हैं?
पूछो, माँ-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं?
पढ़ो,तुम्हारी मेहनत का फल सेठ गटकते क्यों हैं? 

पढ़ो, लिखा है दीवारों पर मेहनतकश का नारा 
पढ़ो, पोस्टर क्या कहता है, वो भी दोस्त तुम्हारा 
पढ़ो, अगर अंधे विश्वासों से पाना छुटकारा 
पढ़ो, किताबें कहती हैं - सारा संसार तुम्हारा 

पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक दिलवाना है 
पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है 

क ख ग घ को पहचानो 
अलिफ़ को पढ़ना सीखो 
अ आ इ ई को हथियार 
बनाकर लड़ना सीखो

शनिवार

वीरांगना महिला थी बिहार के आरा की धरमन बाई

स्वतंत्रता संग्राम में पुरूषों ने जितना योगदान दिया है उसमें हमकदम बनकर महिलाओं ने भी उनका सहयोग किया है। इतिहास भी इसका गवाह है, चाहे वो झांसी की रानी हो या फिर बेगम हजरत महल। ऐसी ही एक वीरांगना महिला थी बिहार के आरा की धरमन बाई। पेशे से तवायफ धरमन बाई को महान स्वतंत्रता सेनानी वीर कुंवर सिंह से अकूत प्रेम था। अपने प्रेम की खातिर इस विरांगना ने अपनी शहादत दे दी थी। 

कहा जाता है कि धरमन बाई और करमन बाई दो बहने थीं, जो आरा बिहार की तवायफ थी। बात 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय की है। इन दोनों का मुजरा काफी प्रसिद्ध था, जिसे देखने के लिए वीर कुंवर सिंह भी जाते थे। उसी दौरान इन दोनों से उनकी आंखे चार हुई। बाबू कुंवर सिंह इन दोनों से बेपनाह मोहब्बत करने लगे, लेकिन धरमन को वो अपने ज्यादा करीब पाते थे, शायद इसी वजह से उन्होंने धरमन से शादी कर ली। 

यहां तक कहा जाता है कि बेपनाह मोहब्बत का ही नतीजा था कि करमन बाई के नाम पर कुंवर सिंह ने करमन टोला बसा डाला, जो आज भी विद्यमान है वहीं धरमन बाई के नाम पर धरमन चौक के अलावा आरा और जगदीशपुर में धरमन के नाम पर मस्जिद मस्जिद का निर्माण करवाया।

वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. नीरज सिंह कहते हैं कि धरमन बाई से बाबू कुंवर सिंह को सच्ची मोहब्बत थी। उस मोहब्बत को एक नाम देने के लिए उन्होंने धर्मन से शादी भी कर ली। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में जहां जहां कुंवर सिंह गए साथ-साथ धर्मन भी गई। उसी दौरान मध्यप्रदेश के रीवा से काल्पी जाने के क्रम में अंग्रेजों से कुंवर सिंह का सामना हुआ। तब धर्मन ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया और अपनी शहादत दे दी।

बाद में कुंवर सिंह रीवा से काल्पी होते हुए आजमगढ़ पहुंचे। वहां से वे बिहार के आरा के समीप स्थित जगदीशपुर जाने के लिए रवाना हुए तो अंग्रेजों ने उनपर हमला कर दिया। इस दौरान ग्रामीणों ने उनका भरपूर सहयोग किया और उन्हें गंगा पार कराने में मदद की। इस दौरान उनके हाथ में गोली भी लग गई। जब उन्होंने अपने साथियों को अपना हाथ काटने को कहा तो वे सब मना कर दिए ऐसे में कुंवर सिंह ने अपनी तलवार निकाली और अपने हाथ को काटकर गंगा को भेंट कर दिया।

डॉ. सिंह कहते हैं कि कटे हुए हाथ के साथ वो आरा पहुंचे औऱ सैनिकों की मदद से आरा नगर पर 23 अप्रैल को कब्जा कर लिया। उसके बाद जगदीशपुर के किले पर कब्जा जमाने के लिए अंग्रेजों के साथ जबर्दस्त युद्ध हुआ और वो 26 अप्रैल को शहीद हो गए। 23 अप्रैल को आरा नगर पर कब्जा जमाए जाने के कारण विजयोत्सव मनाया जाता है।