गुरुवार

'अभावों के आर्यभट्ट' डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह by:- मंगलेश मुफ़लिस

'अभावों के आर्यभट्ट' डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह को 

सिस्टम ने पहले ही सुला दी थी मौत की तीन नींद

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  कुछ ऐसे सिलसिले भी चले ज़िंदगी के साथ
कड़ियां मिलीं जो उनकी तो ज़ंजीर बन गए
- यूसुफ़ बहजाद लिखित यह शेर महान वशिष्ठ नारायण सिंह पर सटीक बैठती है। क्योंकि उन्होंने ऐसी ही जिंदगी में कड़ियां जुड़ीं जो जंजीर होती चली गईं। विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक आईन्स्टीन  के  सिद्धांत ई=एमसी स्क़वायर और मैथ में रेयरेस्ट जीनियस कहे जाने वाले गॉस थ्योरी को चुनौती देने वाले गणितज्ञ डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह अब इस दुनियां में नहीं रहे। पटना के पीएमसीएम में लंबी बीमारी से लड़ते हुए उनके प्राण भले गुरुवार की सुबह निकले हों। लेकिन, उनकी हत्या तो पहले ही की जा चुकी थी। मेरे हिसाब से वशिष्ठ बाबु की यह चौथी मौत है। क्योंकि इसके पहले वे तीन मौतों का सामना कर चुके थे। 
                              डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह को अगर 'अभावों का आर्यभट्ट' कहा जाय तो कोई आतिशयोक्ति नहीं होगी। वशिष्ठ बाबू इकलौते नहीं हैं जो इस तरह की मौत मर रहे हैं। बल्कि निम्न मध्यम वर्गीय परिवार के उनके जैसे सैकड़ों वशिष्ठ रोज मर रहे हैं। हां! यह दीगर बात है कि डॉ. वशिष्ठ नारायण ने मारने की लाख कोशिशों के बावजूद इतने वर्षों तक जिंदा रहकर इस सड़ियल सिस्टम को आईना दिखा दिया। उन्होंने सिर्फ आईन्स्टीन या गॉस के सिद्धांतों को ही चुनौती नहीं दी। बल्कि उन्होंने उस सिद्धांत को भी जरूर एक तगड़ी चुनौती पेश की है जिसके आधार पर आज का परिवार चल रहा है। आज का समाज चल रहा है। यह पूरा सिस्टम चल रहा है। जिस सिद्धांत पर सरकार चल रही है। उन्होंने इस सिस्टम के जर्जर हो चुकी सोच को भी चुनौती दी है जहां सैद्धांतिक तौर पर मरे हुए लोग आज उनकी लाश पर राजनीति कर रहे हैं।


                            वैसे तो वशिष्ठ बाबू से मेरी दो बार की मुलाकात है। लेकिन, मैं उनको महसूसता रहा हूं हरदम। मुझे उनके दर्द को करीब से जानने का अवसर इसलिये मिला क्योंकि पत्रकारिता के सिलसिले में मैं उनके पास चार बार जाकर भी कुछ न तो लिख पाया, और न ही कुछ जानकारी निकाल पाया। उनसे मेरी पहली मुलाकात सम्भवतः 2006-07 के रमना मैदान में लगे पुस्तक मेले में हुई थी। वे आमंत्रित अतिथि थे और मैं शौकिया नौसिखुआ पत्रकार था। वे अधिकांश मौन ही रहते। मिलते ही मूक अभिवादन हुआ। और मेरा सवाल कि 2 में 2 जोड़ने से क्या होगा। उन्होंने जवाब नहीं दिया। उठे, पॉकेट से कलम निकाली और मंच के पीछे लगे पर्दे पर लिखा 2+2 =0, हालांकि इसका अर्थ क्या था वे पूछने पर भी नहीं बताये। तब उनकी लिखते हुए तस्वीर कई अखबारों में छपी थी। बाकी के दो बार उनसे मुलाकात नहीं हो सकी थी।

                           एक बार की मुलाकात उनसे खेत मे हुई थी तब हमने पूछा था कि आप बहुत सुखी आदमी हैं। आपको कौन नहीं जानता इस धरती पर, आपने विश्व के सबसे बड़े वैज्ञानिक के सिद्धान्त को चुनौती देकर अपनी बात मनवाई है। एक बात बताईये आखीर आपके दर्द का आलम क्या है..? उन्होंने कहा था ना जाने क्यों जख्मों-चोटों से मोहब्बत सी हो गई है। ये होते हैं तो खुद के वजूद का एहसास होता है। वरना लोग जन्म लेते हैं। मर जाते हैं, पर कभी चैन से जख्मी होकर नहीं जी पाते! मैं जख्मी होकर जी रहा हूं। क्योंकि इस दर्द से हमें मोहब्बत है। अब सोचता हूं कि 2+2 ही जीरो नहीं था। उन महान गणितज्ञ के लिए यह पूरी दुनिया ही जीरो के समान थी। 


                             हमने पहले भी कहा था कि मेरी नजर में वशिष्ठ बाबू की यह चौथी मौत है। इसे इस प्रकार से समझा जा सकता है। सबसे पहले उन्हें परिवार ने मारा। तब जब उनकी मर्जी के विरुद्ध शादी कर दी गयी। जानकार बताते हैं कि कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में उनकी डॉक्टरेट सलाहकार जॉन केली थे, शोध करते करते न जाने कब जॉन कैली की बेटी लेडी कैली से उन्हें इश्क़ हो गया। लेकिन बिहार के बसंतपुर गाँव में कुछ और ही माहौल था, पिता के चिट्ठी पहुंचते ही वशिष्ठ नारायण सिंह अमेरिका से वापस आये और 1973 में उनका विवाह वन्दना रानी के साथ संपन्न हुआ। प्रोफेसर डॉ. केली अपनी बेटी की शादी वशिष्ठ बाबू से करना चाहते थे। वशिष्ठ नारायण भी इसके लिए तैयार भी थे। लेकिन, उनके पिताजी ने इस रिश्ते से इनकार कर दिया। और डीएसपी की बेटी से उनकी शादी कर दी। उक्त डीएसपी वशिष्ठ नारायण सिंह के पिताजी के सीनियर अफसर थे। वशिष्ठ बाबू के पिताजी पर उनके बड़े एहसान थे। इसलिए वशिष्ठ बाबू के पिताजी ने उनके सपनों का गला घोंट डीएसपी की बेटी के साथ शादी के बन्धन में बांध दिया। 1973 में शादी हुई और 1974 में उन्हें सिजोफ्रेनिया (एक तरह की मानसिक बीमारी) हो गयी। पत्नी से उनके रिश्ते ठीक नहीं रहे। घर में हमेशा होने वाले अनबन पर वशिष्ठ बाबू चुप्पी साध लेते थे। उन्हें कुछ ही दिनों बाद पत्नी ने तलाक दे दिया। इस तरह पिता, मां और पत्नी के अंतर्द्वंद में चल रहे शीतयुद्ध की चक्की में पिसते हुए एक महान गणितज्ञ का पहली निधन हो गया। 

                        अब बारी आई सरकार की। उनके बड़े भाई रिटायर्ड मिलिट्री पर्सन ने उन्हें संभालने की भरसक कोशिश की। जितना कर सकते थे उतना किया। लेकिन, सरकार ने उस विलक्षण प्रतिभा के धनी वैज्ञानिक के लिये अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया। जिनकी वजह से विश्व पटल पर बिहार का नाम रोशन हुआ। जिनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए काम करना बंद कर दिए थे तब वशिष्ठ नारायण सिंह ने उंगली पर कैलकुलेशन शुरू कर दिया था और ताज्जुब तब हुआ जब कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था। जब 1974 में ही उन्हें रांची के कांके स्थित मानसिक आरोग्यशाला में भर्ती कराया गया। जहां इलाज शुरू होने के बाद सरकार ने खर्च वहन करने का ऐलान किया। दो वर्षों तक खर्च दिया। लेकिन, उसके बाद सरकार अपने वादे से मुकर गयी और वक्त के मारे गणितज्ञ जिंदगी के हिसाब में फेल होने लगे। इस दौरान सरकार ने वशिष्ठ बाबू की दूसरी बार हत्या की। यहां वशिष्ठ बाबू जीते जी एकबार पुनः मर गए।


                    समाज की तरफ से पागल घोषित किये जाने के बाद वशिष्ठ नारायण सिंह लम्बे समय तक गुमनामी के अंधकार में चले गए। वर्ष 1998 से कई सालों तक गायब रहने के बाद वे बदहाली के हालत में छपरा के डोरीगंज में मिले। उनके परिचितों ने पहचाना। बिहार सरकार ने उन्हें इलाज के लिए बैंगलोर भेजा। लेकिन, ईलाज का खर्चा देना सरकार ने बंद कर दिया। उनके घरवाले बताते है कि अगर सही ढंग से इलाज कराया जाता तो उनके ठीक होने की संभावना थी, लेकिन गरीबी की मार और सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलने के कारण वे बचाये नहीं जा सके। जईद आदमी ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की नौकरी छोड़ अपने देश अपने समाज के लिए भारत में आकर यहां के कॉलेजों में नौकरी को प्राथमिकता दिया। उसके प्रति समाज का भी दायित्व बनता था। लेकिन, तब समाज ने भी उन्हें ठुकरा दिया। जब लोग उनके बारे में सुनते तो मिलने जाते और फिर उनके साथ एक तस्वीर क्लिक कर उसे सोशल मीडिया में डाल देते। या अपनी प्रोफाइल के फाइल में चिपका कर खुद को गौरवान्वित महसूस करने के लिए रख लेते। लेकिन, कभी किसी संस्था, राजनीतिक दल या सामाजिक कार्यकर्ता ने उनके इलाज की पहल नहीं की। जो सख्श भारतीय सांख्यकीय संस्थान, कोलकाता, आईआईटी कानपुर, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा व टीएफईआर बॉम्बे जैसे देश के ख्यातिलब्ध संस्थानों में नौकरी किया। उसे न तो उनके साथ पढ़ने वाले, न ही साथ पढ़ाने वाले, और न ही उनके साथ नौकरी करने वालों ने कभी उनके इलाज के बारे में पहल की। ऐसे में यही कहा जायेगा कि परिवार समाज और सरकार तीनों ने ही वशिष्ठ बाबू की मिलजुल कर हत्या कर डाली। तीनों ही अपनी जिम्मेदारी से मुकर गए। जिससे इस महान गणितज्ञ को गुमनामी के अंधेरे में अपनी जिंदगी की आखीरी सांस लेनी पड़ी। 
@मंगलेश मुफ़लिस
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                                                                    मंगलेश तिवारी


शनिवार

सुनील पाण्डेय की अब तक जीवन यात्रा




माफिया कहलाने की चाहत ने शाहाबाद की उपजाऊ जमीन को कई बार खून से सीचा है.. यहाँ के घरों में खेला जाता रहा है खुनी खेल.. नेता बनना हो तो बैलेट नहीं बुलेट का जोर होना जरूरी माना जाता रहा है.. और शाहाबाद के इस क्षेत्र में बुलेट के बल पर कई लोग नेता भी बने पर इन सबों में नम्बर एक की कुर्सी पर विराजमान है वर्तमान में तरारी विधानसभा से जद (यु) के विधायक नरेंद्र पाण्डेय उर्फ़ सुनील पाण्डेय... जिसके नाम मात्र से कभी थर्रा उठती थी शाहाबाद की धरती.. जिसका नाम लगातार दर्जन भर लूट और हत्याओं समेत कई संगीन मामलों में आता रहा... अंडरवर्ल्ड डॉन और बॉस के नाम से विख्यात सिल्लू मिया से जरायम की दुनिया का गुर सिखने वाले सुनील ने अपने गुरु का ही कर दिया काम तमाम और बन गया अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह.. अपराधिक गतिविधियों के साथ खूब पैसा बनाया और तैयार कर ली राजनितिक जमीन.. फिर अपने सहोदर भाई हुलास को अपराध की दुनिया का बनाया नूर और खुद बन गया इलाके का विधायक... समय बीतता गया और भाई को भी राजनीति में लेकर आया बक्सर-आरा सीट से विधान पार्षद बनाकर..

                 
      माला पहने हुए सुनील पाण्डेय और उनके भाई हुलास पाण्डेय 
    
                                सुनील के पिता कामेश्वर पाण्डेय सेना में लेफ्टिनेंट थे पारिवारिक हालात ऐसे बने की उन्हें नौकरी छोड़ कर वापस गाँव आना पडा उस दौर में यादवों के आतंक से रोहतास जिले का नवाडीह गाँव के लोग परेशान थे उनकी जमीने हडपी जाने लगी थी.. ऐसी परिस्थिति में परिवार के लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सुनील के पिता कामेश्वर पाण्डेय गाँव की राजनीति में हस्तक्षेप करने लगे.. लिहाजा उनके दुश्मनों की संख्या बढ़ने लगी तब उन्होंने आपराधिक छवि के लोगों के साथ दोस्ती गांठनी शुरू की.. और उसके बाद शुरू हुआ अपराध की दुनिया के लोगों का सुनील के घर आना-जाना.. सुनील पाण्डेय भी इसी क्रम में इन दागदार लोगों के संपर्क में आया.. बचपन से पढने में तेज तर्रार छात्र सुनील ने प्राकृत से एम ए किया है और पी एच डी की डिग्री भी ली है.. लेकिन उसने पढाई से कुछ ख़ास करने के बजाय अपराध की दुनिया में ही हाथ पाँव पसारा ...कुख्यात सिल्लू मियाँ और शेखर दादा जैसे लोगों से संपर्क में होने की वजह से क्षेत्र में उनका खौफ कायम हो गया .. सन 1991 में फखत एक रिवाल्वर के लिए सुनील पाण्डेय के पिता की ह्त्या कर दी गयी.. और इस ह्त्या में नाम आया कुख्यात रामू ठाकुर का.... इधर सुनील पाण्डेय की आपराधिक छवि तैयार हो चुकी थी.. इलाके के बाहर भी सुनील के कारनामों के चर्चे होने लगे थे.. अब सुनील भी पिता की हत्या के बाद बदले की आग में जलने लगा था .. पिता के हत्यारे से बदला लेना कभी सुनील की जिंदगी का एकमात्र मकसद बन गया था पिता के हत्यारे को सुनील ने मारकर बदला ले लिया.. उसके बाद सुनील पाण्डेय ने अपने पिता की विरासत संभालने का बीड़ा उठाया... और अपने पिता के दोस्तों के साथ उनके धंधों में कदम रख दिया... फिर क्या था एक झटके में इंजीनियरिंग का एक मेधावी छात्र क्राइम की दुनिया का हथियार बन गया ..सुनील के बारे में बताया जाता है की वह बैंगलोर में इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे थे और उस दौरान वे पढाई में अव्वल आते रहे थे.. लेकिन पिता की हत्या के बाद पारिवारिक असुरक्षा के कारण उन्हें इंजीनियरिंग की पढाई बीच में ही छोडनी पड़ी थी.. इंजीनियरिंग की पढाई के दौरान ही बैंगलोर के कुछ छात्र सुनील से उलझ गए थे और सुनील की पिटाई कर दी थी.. इस घटना से सुनील पाण्डेय के अन्दर बदले की आग पनप गयी थी और झगडे के कुछ दिनों बाद ही सुनील ने उस लड़के को चाक़ू मार दिया जिससे उनकी झड़प हुयी थी ..कारण चाहे जो भी रहा हो यह घटना सुनील के जीवन का पहला अपराध था.. इस घटना ने सुनील को सुनील से साहब बना दिया .. अब कॉलेज के छात्रों के बीच सुनील ‘साहब’ के नाम से जाना जाने लगा.. अपराध की दुनिया का ठप्पा लगने के बाद सुनील को माफिया और पैसे वाला बन्ने की ललक पैदा हो गयी ...और देखते ही देखते सुनील जुर्म की दुनिया का चमकता हुआ सितारा बन गया ...अपराध जगत में कदम रखने के बाद सुनील ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और निरंतर घटनाओं को अंजाम देता रहा ..  
                          
                           सिल्लू मियाँ के साथ सुनील पाण्डेय (ट्रैक सूट में हथियार के साथ)

                                                             कुछ ही दिनों में सुनील ‘साहब’ के नाम से प्रख्यात हो गया.. इसकी आपराधिक गतिविधियाँ भोजपुर में ही नहीं अलग अलग प्रदेशों में भी होने लगी .. आरा शहर में क्राइम के बादशाहों की बैठकें होने लगी .. हर शाम आरा रेलवे स्टेशन के पास निरामिष होटल में अंडरवर्ल्ड से जुड़े लोगों की मीटिंग होती उस समय .. सिल्लू मियाँ उर्फ़ बॉस , सुनील पाण्डेय, प्रमोद सिंह, कुश सिंह, रशीद पहलवान समेत कई हस्तियाँ एक साथ मिलतीं और आपराधिक योजना बनाए जाते.. सूत्र बताते हैं की सहियार गाँव में एक शादी के दौरान जहाँ जुर्म की दुनिया के दर्जन भर से ज्यादा बड़े क्रिमिनल मौजूद थे वहां सुनील पाण्डेय गडहनी ग्रामीण बैंक लूट कर पहुंचा था .. और बॉस सिल्लू मियाँ को इसकी जानकारी दी थी .. जी हाँ यह वहीँ सुनील पाण्डेय है जिसके नाम मात्र से अपराध की दुनिया के लोग भी थर्रा उठते थे ..आगे चलकर अंडर वर्ल्ड की दुनिया में सुनील को 'इंजिनियर' के नाम से भी जाना जाने लगा ..यहाँ से शुरू हुआ सुनील पाण्डेय का राजनितिक सल्तनत विस्तार..और इन मुख्य घटनाओं में आया सुनील पाण्डेय का नाम ..

                          हुआ यूँ कि आरा सिविल कोर्ट बम ब्लास्ट के मास्टर माईंड लम्बू शर्मा की गिरफ़्तारी के बाद किये गये खुलासे ने राजनितिक गलियारों में हडकंप मचा दी थी दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को जो जानकारी लम्बू शर्मा ने दी थी उसके बाद माफिया डॉन और विधायक मुख्तार अंसारी की हत्या की कोशिश एक बार फिर नाकाम हो गयी जब दिल्ली की स्पेशल सेल ने बिहार के कुख्यात शूटर लम्बू शर्मा को धर दबोचा था. लम्बू ने मुख्तार की हत्या के लिए 5 करोड़ की सुपारी मिलने की बात कबूल की थी। लम्बू शर्मा से हुए खुलासे ने आगरा जेल में बंद मुख्तार की हत्या की साजिश का जो पर्दाफाश किया वह किसी फ़िल्मी कहानी सरीखा था। लंबू शर्मा ने पूछताछ में बताया था कि वह मुख्तार अंसारी की हत्या की योजना में था। इसके लिए उसने पांच करोड़ रुपये की सुपारी ली थी। उसमें उसे 50 लाख रुपये एडवांस मिल भी चुके थे। शेष रकम काम के बाद मिलनी थी। आरा(बिहार) के पीरो बाजार स्थित गांधी चौक का रहने वाला सच्चिदानंद उर्फ लंबू शर्मा को यह सौदा उसके साथी चांद ने कराया था। बिहार का ही रहने वाला चांद कभी मुख्तार से जुड़ा था लेकिन अब वह उनके जानी दुश्मन बृजेश सिंह के साथ है। चांद को बृजेश सिंह के करीब ले जाने वाला कोई प्रमोद सिंह था। वह चाहता था कि लंबू मुन्ना बजरंगी को ठिकाने लगाए लेकिन बृजेश ने उसे पहले मुख्तार अंसारी के खात्मे के लिए तैयार किया। उसमें बिहार के जदयू के बाहुबली विधायक सुनील पाण्डेय तथा उनके एमलसी भाई हुलास पाण्डेय ने अहम भूमिका निभाई थी। दोनों भाई बृजेश सिंह से जुड़े हैं। सब कुछ तय होने के बाद बात आई कि आरा कोर्ट में बम बलास्ट कांड में उम्र कैद की सजा भुगत रहे लंबू शर्मा को न्यायिक हिरासत से कैसे मुक्त कराया जाए। जदयू के दोनों भाइयों ने योजना बनाई। एक अन्य मामले में बीते 23 जनवरी को लंबू शर्मा की आरा कोर्ट में पेशी थी। कोर्ट में लंबू की माशूका नगीना देवी मिलने आई। योजना के मुताबिक नगीना को धोखे से मानव बम बना दिया गया । मुलाकात के लिए कोर्ट में जाने से पहले नगीना को टिफिन दिया गया। बताया गया कि इसमें खुफिया कैमरा लगा है। मुलाकात के लिए यह जरूरी है। गहरी साजिश से अनजान नगीना वह टिफिन लेकर कोर्ट में पहुंची तभी रिमोट से टिफिन में रखा बम उड़ा दिया गया। नगीना मौके पर ही मारी गई। उसी बीच भगदड़ का लाभ उठा कर लंबू भाग निकला। फिर वह दिल्ली गया। साथी चांद की मदद से वह जदयू के सांसद गुलाम रसूल बलियावी के आवास पर रुका। उसके बाद ‘ऑपरेशन मुख्तार’ पर काम शुरू हुआ। चांद के जरिये लम्बू शर्मा आगरा जेल पहुंचा। एक शुभेच्छु की हैसियत से वह मुख्तार से मिला। साथ ही मुख्तार की सुरक्षा की तैयारियों का जायजा लिया। फिर योजना का ब्लूप्रिंट तैयार करने में लंबू जुट गया। कृष्णानंद हत्याकांड और मकोका के मामले में मुख्तार की प्रायः हर माह दिल्ली की कोर्ट में पेशी होती है। लंबू शर्मा की योजना यही थी कि आगरा जेल से दिल्ली के बीच रास्ते में मुख्तार पर वह सटीक हमला करेगा लेकिन संयोग रहा कि वह योजना अमल में आती कि उसके पहले ही लंबू शर्मा 23 जून की रात दिल्ली के महाराणा प्रताप अंतरप्रांतीय बस अड्डे से पकड़ा गया। इस सबके बीच सतर्क मुख्तार अंसारी को एक मामले में गाजीपुर की अदालत में बीते सोमवार को पेश होना था मगर वो पेशी पर नहीं पहुचे  | हलाकि एक अन्य मामले की जाच में आरा पहुचे शाहाबाद के डीआईजी मो रहमान ने इस सन्दर्भ में पहली बार बताया था कि दिल्ली पुलिस ने लम्बू के जो भी बयान लिए है उसकी जानकारी भोजपुर पुलिस को नहीं है जेडीयू के बाहुबली विधायक और उसके ऍमएलसी भाई हुलास पाण्डेय की संलिप्तता वाली सवाल पर डी आई जी ने कहा था की यह जाँच का विषय है और दोषी पाये जाने वाले लोगो पर करवाई होगी
उसके बाद पुलिस ने
26 जून को ट्रांजिट रिमांड पर आरा लायी थी ..फिर एक जुलाई को पटना ए डी जी ने मीडिया को बताया था की लम्बू शर्मा ने जदयू के विधायक सुनील पाण्डेय का नाम लिया था .. 2 जुलाई को भोजपुर पुलिस ने पहली बार लम्बू शर्मा को तीन दिनों के लिए रिमांड पर लिया था दो जुलाई को ही सुनील पाण्डेय भोजपुर एस पि से मिले थे और लम्बू से किसी भी तरह के कनेक्शन से इनकार किया था  फिर सात जुलाई को पटना हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था और केस के अनुसंधानक को लेकर भोजपुर पुलिस अधीक्षक को कोर्ट में बुलाया था और लम्बू को पनाह देनेवालों को भी अभियुक्त बनाने का आदेश दिया था आठ जुलाई को फिर लम्बू शर्मा को पुलिस ने रिमांड पर लिया था उसके बाद 11 जुलाई को सुनील पाण्डेय को गिरफ्तार कर लिया गया

जहवा जइबा उहे लुटईबा सब बाटे खखुआइल... सब बाटे खखुआइल





बड़ा बाग बा…बड़ा लाग बा जिंदगी बा अझुराईल
कहीं रौशनी लउकत नइखे आसमान बा बदराईल…. आसमान बा बदराईल

डगर-डगर पर काँट बिछल बा पनघट-पनघट धोखा 
फुल-फुल विष से मातल बा मौसम बा भंगियाइल…मौसम बा भंगियाइल

जात-पात में भूलल केहू, केहू मंदिर मस्जिद
केहू गिरजाघर गुरुद्वारा मानव धर्म भुलाईल …मानव धर्म भुलाईल

लोग बाग के छल प्रपंच में नाक-कान ले डुबल आगे पाछे कुछ ना सूझे 
स्वारथ बा गड़ुआइल…… स्वारथ बा गड़ुआइल  ….

लहकत बा केहू के छाती लहकत मडई-भुसहुल
माल-जाल के के कहो आदमी  ले  झोकराइल आदमी  ले  झोकराइल  …

बम फूटता जहवाँ तहवाँ गरदन कहीं कटाता
देश लुटाता देश बिकाता दुश्मन बा अगराइल..... दुश्मन बा अगराइल

केहू नइखे आगे आवत नइखे आग बुझावत
नीमन लोग किनारा कइके आपन माल  लुकाइल ....आपन माल लुकाइल

साधू  संत के भेष भर बा योग युगुत कुछ नइखे 
राह रहन इनकर बा जुगुआइल आ भसिआइल…. जुगुआइल आ भसिआइल 

कहवा बा बिश्वास आस अब कहवा माथ टेकाई
जहवा जइबा उहे लुटईबा सब बाटे खखुआइल... सब बाटे खखुआइल

आपन भाग्य सावारा अपने आपन ज्योत जगावा
भैया शक्ति बटोरा आपन जेतना बा छितराईल ……जेतना बा छितराईल

बाहर से ना आवे कुछुओ अन्दर शक्ति भरल बा
जैसे तकबा तैसे भीतर लहकी बा आग दबाईल…लहकी बा आग दबाईल

उठा आगाड़ी आवा तू मुहवा जोहल छोड़ा
जहावा भइला ठाढ़ देहिया झार भुत पराई ….देहिया झार भुत पराई

सोमवार

तेल भईल बा मंहगा, मंहगा भईल बा पानी, कवन चीझ बा सबसे सस्ता बुझs बुझौवल तs जानी।

गंगा जमुना कोसी गंडक, चले चाल मस्तानी,
नेता जी के ठाठ बाठ बा गाँव में भरल बा पानी।
वाह जोगी जी वाह वाह, जोगीरा सा रा रा रा।

दिल्ली देखs पटना देखs सहर देखs कलकात्ता
सहर सहर अंजोर भईल बा गाँव भईल नापाता।
वाह जोगी जी वाह वाह, जोगीरा सा रा रा रा।


काहे खातीर करूणा रूसा, काहे खातीर ममता
काहे खातीर मुलायम रुसा , बुझत बिया जनता।

सत्ता के सब खेल है भईया , सत्ता ही हवे निशानी,
एही खातीर मुलायम रूसे, नितीश बोले मीठी बानी।
वाह जोगी जी वाह वाह, जोगीरा सा रा रा रा।


कवन देश से आया रे भैया, कवन देश तोर गाँव रे,
कवन जात से आया तू,बता दे अपना नाँव रे।
भारत माँ के गाँव बता दे जवन तोर महतारी
गंगा मैया के जात बता दे जवान पाप के हारी।

कवन तोर गुरु है राज, का है तोरा काज रे बाज
भाई भाई को बाँट के का तोहे मिलेगा ताज?
वाह जोगी जी वाह वाह, जोगीरा सा रा रा रा।


तेल भईल बा मंहगा, मंहगा भईल बा पानी,
कवन चीझ बा सबसे सस्ता बुझs बुझौवल तs जानी।
खून भईल बा सबसे सस्ता, बेमोल भईल बा ग्यानी,
दुराचार आसान भईल बा, अमोल भईल अधम अभिमानी।
वाह जोगी जी वाह वाह, जोगीरा सा रा रा रा।

एक हाथ से घिसे सिलबट्टा एक हाँथ में कट्टा,
बन जा रानी लक्ष्मीबाई तू हर ल रावन के दुपट्टा।

बुधवार

सम्मान उनके हाथों का स्पर्श पाकर सम्मानित होते थे..

आज भारत रत्न शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान की जयंती है ...

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान अपनी कला में ऐसे शीर्ष पर पहुंचे थे जहां सम्मान उनके हाथों का स्पर्श पाकर सम्मानित होते थे और भारत के शायद ही ऐसा कोई शीर्ष सम्मान होगा जो उनको न अर्पित किया गया हो। 11 अप्रैल, 1956 को राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने हिन्दुस्तानी संगीत सम्मान अर्पित किया राष्ट्रपति के ही हाथों 27 अप्रैल, 1961 को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 16 अप्रैल, 1968 को पद्मभूषण, 22 मई, 1980 को पद्म विभूषण के बाद 4 मई 2001 को तत्कालीन राष्ट्रपति के .आर. नारायणन ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया।

गांव की पगडंडी तक बजनेवाली और राजघराने की चटाई तक सिमटी शहनाई को उस्ताद ने संगीत के महफिल की मल्लिका बना दिया. भोजपुरी और मिर्जापुरी कजरी पर धुन छेडने वाले उस्ताद ने शहनाई जैसे लोक वाद्य को शास्त्रीय वाद्य की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. संगीत के इस पुरोधा को पाठ्य पुस्तक में शामिल किया गया है. लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि ऐसे व्यक्तित्व पर आम लोगों तक गलत विषय वस्तु की प्रस्तुति कई सवाल खड़े कर देते हैं . बिहार टेक्स्ट बुक के दसवीं कक्षा की हिन्दी पाठ्य पुस्तक “ गोधूलि” (भाग-2) के प्रथम संस्करण- 2010-11 में “नौबतखाने में इबादत” में उस्ताद के नाम कमरुद्दीन की जगह अमिरुद्दीन ( पृष्ठ सख्या-92-97) प्रकाशित किया गया है. जो बेहद शर्मनाक है और ताज्जुब है की तीन सालों में भी इसमें कोई सुधार नहीं की गयी है ...

सोमवार

 हर साल की तरह दशहरा इस बार भी निभा  ही लिया



  एक बार फिर  रावण  मार कर जश्न  मना  ही  लिया 


  लेकिन दिलो में बसे रावण को हम साल भर पालते है 


  क्योकि अपनी लंका को सोने की बनाने को जो ठानते है 


  और साल में एक बार अपने दिलो को सकूं देने के लिए 


 दिखावे के लिए ही रावण को मार कर खुद को राम जानते है

रविवार

हर शाम मैं धुआँ धुआँ हो बिखर जाता हूँ ,
के कभी किसी शाम यह जलन तेरे प्यार की होगी .
हर शाम मैं पलकों से आँखों को भी सी जाता हूँ ,
के आँसू जो छलके मेरे होठों पे तेरे लिए खारेपन की निशानी होगी .
आँखें उलझ जाती है जो कभी तेरी आँखों के धागों से ,
हर शाम मैं पतंग सा कट के उड़ जाता हूँ ,
के कट ही ना जाऊ कभी तेरी नझर के मांझों से.
हर शाम मैं धुआँ धुआँ हो बिखर जाता हूँ ,
के मेरी ये जिद्द है अब हर शाम तेरी जुल्फ तले होगी.
हर शाम मैं खुद को एक याद बना बहा भी आता हूँ ,
के यादें जो बरसी तो यह बाढ तेरी यादों की होगी .
कभी तेरी पागलों सी बातों में तो कभी बेबात ही हँसी में ,
हर शाम मैं तो इनमे तेरी जुल्फों सा उलझ जाता हूँ ,
के सुलझु तो क्या रखा है गैरों की बातों में.
हर शाम मैं धुआँ धुआँ हो बिखर जाता हूँ ,
के साँसे जो तू लेगी तो यह खुशबू मेरी ही होगी .