शनिवार

यहां शिक्षा पर भूख हावी हो रही है।


यहां शिक्षा पर भूख हावी हो रही है।

बाल मजदूरी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश व प्रशासनिक अधिकारियों की कोशिश ईट भट्ठों पर हवा में उड़ती प्रतीत होती हैं। यहां काम कर रहे मजदूरों के बच्चों का बचपन अक्सर यहीं से शुरू होकर यहीं समाप्त हो जाता है। हालांकि, कुछ सरकारी प्रयासों के बाद कुछ बंधुआ मजदूरों को आजादी जरूर मिली है। लेकिन, वास्तव में आज भी यहां काम कर रहे हजारों मजदूरों का बचपन यहीं झुलस कर समाप्त हो जाता है।
जिला के ईट भट्ठों पर बाल मजदूरी रोकने के प्रयासों की कोशिशें महज फाइलों तक ही सीमित रह गई है। जिलाभर में 100 से अधिक  ईट भट्ठा पर कार्य चलता है। हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भी अधिकांश भट्ठों पर बाल मजदूरी चल रही है। ईट भट्ठों पर निगरानी रख रहे अधिकारियों ने बताया कि अक्सर टीम जब भी निरीक्षण पर जाती है, तो यहां कार्य कर रहे मजदूर ही सच्चाई नहीं बताते। वे निजी स्वार्थ के चलते इन्हें अपने साथ काम में लगा कर रखते हैं। मुख्य रूप से ईट भट्ठों पर निगरानी का कार्य लेबर अधिकारी पर होता है। भट्ठा मजदूरों को प्रति हजार लगभग 270 रुपये ईटों के रुप से अदायगी होती है। इसमें अधिक धन कमाने के चक्कर में यहां काम कर रहे मजदूर इस काम में लालच वश अपने बच्चों को लगा देते हैं। सरकारी योजनाओं के अनुसार ईट भट्ठों पर लगने वाले बच्चों के लिए पाठशालाओं को भी चलाया गया था, लेकिन यह योजना भी दम तोड़ चुकी है। इससे इस दिशा में व्यापक सुधार नहीं हो पाया है।
 बेशक, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय रोजगार गारटी योजना शुरू करने के साथ शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर दिया हो, लेकिन ईट भट्ठों मे कार्यरत मजदूरों व उनके बच्चों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। यहां के मजदूर दिनरात मेहनत के बावजूद अपने और बच्चों के तन पर कपड़ा व दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पा रहे। सरकार की महत्वाकाक्षी योजनाओं की जमीनी हकीकत यह है कि योजनाओं के लाभ से मजदूर वर्ग कोसों दूर है।
हैरानी की बात है कि, यहाँ के ईट भट्ठों पर कार्यरत मजदूरों को मनरेगा योजना व शिक्षा का अधिकार कानून के बारे में जानकारी ही नहीं है। यहां कार्य कर रहे बच्चों की हालत यह है कि वे जी तोड़ मेहनत करने के बावजूद अपना जीवन बेहतर ढंग से बसर नहीं कर पा रहे। हालात यह है कि, मजदूर अपने बच्चों को स्कूल भेजने की अपेक्षा उन्हें अपने साथ कार्य में संलग्न कर रहे है।
आरा बक्सर मेन रोड पर एक ईट भट्ठे पर कार्यरत मजदूर परिवारों के लगभग आधा दर्ज़न से अधिक बच्चे है। स्कूल जाने की उम्र में ये सभी अपने परिजनों के साथ मिलकर ईटे बनाने का काम करते हैं। प्रवासी मजदूर बिंदी, राजा व जुल्म सिंह आदि ने बताया कि गरीबी की मार के आगे कोई जोर नहीं चलता। मजदूरों ने बताया कि उन्हें सरकार द्वारा किसी प्रकार की चिकित्सा सुविधा प्रदान नहीं की जा रही। आसपास के कस्बे या गाव से डॉक्टर आते है, जो महगे पड़ते है और समुचित इलाज भी नहीं मिलता। इसके अलावा सरकार के अभियानों के बारे में भी उन्हे अवगत नहीं कराया जाता। यहां के बच्चों से शिक्षा तो कोसों दूर है। ईट बनाने का सीजन तीसरे मास में प्रवेश कर चुका है, लेकिन अभी तक किसी भी अधिकारी ने इस बारे कोई जानकारी नहीं दी है। स्थानीय सामान्य अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. गिरी राज शर्मा ने बताया कि खसरा रोधी अभियान के तहत प्रखंड के गाव में दिन निर्धारित किया गया है। गाव के पास लगते ईट भट्ठे पर तय दिन को ही खसरा रोधी टीका लगाया जाएगा।
मजदूर कल्याण की लंबी-चौड़ी सरकारी योजनाएं प्रखंड में दम तोड़ रही है। मजदूरों को इनका कितना लाभ मिल पाता है, यह ईट भट्ठों पर कार्यरत मजदूरों की हालत से सहज ही देखा जा सकता है। ईट भठ्ठा मालिकों की आधी अधूरी सुविधाओं के सहारे नरकीय जीवन जीना पड़ता है। महंगाई की आग में झुलस रहे मजदूरों को जब भी काम मिलता है, तब ही दो जून की रोटी नसीब होती है।
क्षेत्र में करीब चार दर्जन ईट भट्ठे है, जहा सैंकड़ों मजदूर परिवार कार्य कर रहे है। इस क्षेत्र में पहले भी ईट भट्ठा मालिकों पर मजदूरों को बंधक बनाने का आरोप लग चुका है। वहीं प्रशासन का सर्व शिक्षा अभियान के तहत किताबें वितरित करने की कार्रवाई भी पूरी नहीं हो पाती। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग मोबाइल टीम भेज कर पोलियो ड्राप पिलाने की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। मजदूरों ने बताया उनका गुजारा भट्ठा मालिक के सहारे हो रहा है। इन दिनों काम चल रहा है। बरसात व गर्मी के मौसम में तो उनके सामने भूखा मरने की नौबत आ जाती है। मजदूरों ने बताया कि पाच लोगों को 15 दिन काम करने पर पाच हजार रुपये मिलते हैं, जिनसे उनके परिवार का गुजारा नहीं हो पाता। भट्ठा मालिक के दिए गए सुविधाहीन निवास पर उन्हें अपना जीवन गुजारना पड़ता है। प्रशासन की ओर से बच्चों को एक-दो बार ही किताबें दी गई है, बिजली-पानी की सुविधा तो दूर की बात है। इसी के साथ मजदूरों के बच्चों अबदुल, कबीर, अब्दूल समीर व सायना ने बताया कि उनका मन भी पढ़ाई करने का करता है। गरीबी के कारण वह पढ़ाई नहीं कर पाते।

जान जोखिम में डाल दो वक्त की रोटी जुगाड़ रहे है मासूम


जान जोखिम में डाल दो वक्त की रोटी जुगाड़ रहे है मासूम  

पापी पेट  गरीबी आदमी को  जाने क्या-क्या करने के लिए मजबूर कर देती है। इसका ताजाउदाहरण आजकल लोगों को बक्सर की सड़कों पर सरेआम देखने को मिल रहा है। स्कूल जाने कीउम्र में एक छोटी बच्ची अपने पेट की आग को बुझाने के लिए दो बासों के बीच झूलते  एक रस्से परचलकर लोगों का मनोरजन करती है। 
 उक्त लड़की ने उस समय दर्शकों की खूब तालिया बटोरी जब उसने सिर पर कई लुटिया रखकरसाइकिल के चक्के के साथ रस्सी पर चलने का करतब दिखाया।लड़की के पिता जगदीश साह नेबताया कि वह झारखण्ड का रहने वाला है। वक्त की मार से लड़कर अपने परिवार का गुजारा चला रहाहै। उसने बताया कि उसके पास तीन बच्चे हैजिनमें कल्याणी सबसे बड़ी है। गरीबी के चलते उसेअपने बच्चों से जोखिम से भरे ऐसे करतब करवाने पड़ रहे है। जबकि उसका भी मन करता है कि वहअपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाकर उन्हे कुछ बना सके। लेकिनवह इतना गरीब है कि अपनेबच्चों को पढ़ाने में असमर्थ है अलबत्ता बच्चों द्वारा ही लोगों को करतब दिखाने से उसे जो रुपया मिलता हैउससे ही वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। उसने रूंधे स्वर में कहा किकिसका मन करता है कि वह अपने छोटे-छोटे बच्चों से ऐसे जोखिम भरे खेल करवाकर उनकीजिन्दगी को दाव पर लगाए। लेकिन गरीबी ऐसी चीज हैजो व्यक्ति को कुछ भी करने के लिए मजबूरकर देती है।

उसने बताया कि  तो उसके पास रहने को छत है और  ही बच्चों को दो वक्त की रोटी देने का कोईजुगाड़। लोगों को खेल दिखाकर यदि कुछ मिल जाता हैतो वह उससे ही अपने बच्चों कोखिला-पिला पाता है। जगदीश की पत्नी दुर्गावती ने कहा की अब यह उनका पुश्तैनी धधा बन चुकाहैजिसे सारे परिवार ने दिल से स्वीकार कर लिया है क्योंकि उनके पास इससे ज्यादा करने के लिएकुछ है भी तो नहीं।