बुधवार

सम्मान उनके हाथों का स्पर्श पाकर सम्मानित होते थे..

आज भारत रत्न शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान की जयंती है ...

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान अपनी कला में ऐसे शीर्ष पर पहुंचे थे जहां सम्मान उनके हाथों का स्पर्श पाकर सम्मानित होते थे और भारत के शायद ही ऐसा कोई शीर्ष सम्मान होगा जो उनको न अर्पित किया गया हो। 11 अप्रैल, 1956 को राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने हिन्दुस्तानी संगीत सम्मान अर्पित किया राष्ट्रपति के ही हाथों 27 अप्रैल, 1961 को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 16 अप्रैल, 1968 को पद्मभूषण, 22 मई, 1980 को पद्म विभूषण के बाद 4 मई 2001 को तत्कालीन राष्ट्रपति के .आर. नारायणन ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया।

गांव की पगडंडी तक बजनेवाली और राजघराने की चटाई तक सिमटी शहनाई को उस्ताद ने संगीत के महफिल की मल्लिका बना दिया. भोजपुरी और मिर्जापुरी कजरी पर धुन छेडने वाले उस्ताद ने शहनाई जैसे लोक वाद्य को शास्त्रीय वाद्य की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. संगीत के इस पुरोधा को पाठ्य पुस्तक में शामिल किया गया है. लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि ऐसे व्यक्तित्व पर आम लोगों तक गलत विषय वस्तु की प्रस्तुति कई सवाल खड़े कर देते हैं . बिहार टेक्स्ट बुक के दसवीं कक्षा की हिन्दी पाठ्य पुस्तक “ गोधूलि” (भाग-2) के प्रथम संस्करण- 2010-11 में “नौबतखाने में इबादत” में उस्ताद के नाम कमरुद्दीन की जगह अमिरुद्दीन ( पृष्ठ सख्या-92-97) प्रकाशित किया गया है. जो बेहद शर्मनाक है और ताज्जुब है की तीन सालों में भी इसमें कोई सुधार नहीं की गयी है ...

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