शनिवार

तो मर जायेगी तन्हाई..


मेरे बाद किधर जायेगी तन्हाई..
मैं जो मरा तो मर जायेगी तन्हाई..
मै जब रो-रो के दरिया बन जाउंगा..
उस दिन पार उतर जायेगी तन्हाई..
तन्हाई को घर से रुखसत तो कर दूं..
सोचूं, किस के घर जायेगी तन्हाई..
वीराना हूं, आबादी से आया हूं..
देखेगी तो डर जायेगी तन्हाई..
यूं आओ के पाओं की भी आवाज़ ना हो..
शोर हुआ तो मर जायेगी तन्हाई..

बुधवार

इंसानियत की बातें किताबों में रहने दो.

जिंदगी को तन्हा,वीरानों में रहने दो,


ये वफ़ा की बातें ख्यालों में रहने दो


.
हकीकत में आजमाने से टूट जाता है दिल



,
ये इंसानियत की बातें किताबों में रहने दो. —

कत्ल का इश्तहार.

मुझे और नहीं ढोना है अब 
ख़ामोशी का ताबूत
जिसमें बंद हैं सच के कंकाल
और आवाजों की बुझी मशालें
मेरी पीठ पर लाद जिसे
छोड़ देते हैं मुझे वे
अनिश्चय की भुरभुरी चट्टान पर

उनके ईश्वर के
हर गर्दन नापने के लिए बढ़े हाथ
मेरे हाथों में कोई धर्मग्रन्थ थमा
उकसाते हैं मुझे
झूठ को सच और सच को झूठ की
कब्र में दफना देने के लिए
और करते हैं इन्तजार
कब मेरी आवाज में
पैदा हो दरार
और मेरे गले में फूल मालाएं पहना
जुलूस की शक्ल में मुझे घुमायें
गली-गली, बाज़ार-बाज़ार

मेरे अंदर खमीरे आटे की तरह
लगातार फूल रही है एक गाली
मेरे हाथों में है संकल्प का चाकू
जिससे काट सकता हूँ
उनकी हर साजिश को
उनका जेहन उघाड़कर
उसमें भरे मवाद को
नंगा कर सकता हूं सरेआम
न मुझे तलाश है
उनकी खोखली आवाज में किसी क्रांति की
जिसके नाम पर वे 
इकट्ठा करते हैं चन्दा
आती है उनके पसीने से तब
ताजे खून की गंध

तिलचट्टों की कतार के साथ
मैं चल जरूर रहा हूँ
लेकिन अपने पैरों से

मेरी आँखों के सामने
फैला है जो धुआँ
जानता हूँ
जिन चिमनियों से होकर आ रहा है
उनके नीचे सुलग रहा है
गीली आवाजों का जंगल
इसका अर्थ समझाने के लिए वे
ले जाते हैं मुझे
गैस चेम्बरों में बार-बार
फिर भी आग के लिए मेरी तड़प देख 
तिलमिलाकर बदलते हैं पैंतरा
और स्कूल के रास्ते से
कर लेते हैं किसी बच्चे का अपहरण

फासला तय करने के लिए 
पहन लूँ क्या उनकी नाप के जूते
या फिर प्रेम से निकलकर बच्चे का चित्र
लगा दूँ वहाँ
किसी के कत्ल का इश्तहार.

गुरुवार

ऐ खुदा मुझे उस का उसे मेरा कर दे,


दिल के आंगन में चाहत का सवेरा कर दे,
 ऐ खुदा मुझे उस का उसे मेरा कर दे,


एक बार गिरा हुस्न अपने दिवाने पर,
कुछ शरमा और फिर सामने चेहरा कर दे,

चलो बसा लें दुनिया नई एक-दूसरे में,
आ मेरी रूह पे अपनी मोहब्बत का पहरा कर दे।

मैं मिट्टी में मिल जाऊंगा एक दिन।


तेरी चाहत में हद से गुजर जाऊंगा एक दिन,
प्यार होता है क्या ये दिखाऊंगा एक दिन,


तेरी संगदिली को सहते-सहते,
मैं अपनी जान से जाऊंगा एक दिन,

अपनी चाहते सारी तुझपे वार के,
प्यार करना तुझे भी सिखाऊंगा एक दिन,

जी ना पाएगी तु भी हो के जुदा मुझसे,
ऐसा प्यार तुझ से कर जाऊंगा एक दिन,

अंधेरो में ढूंढ़ती रह जाएगी मुझको,
ऐसी बेरूखी दिखलाऊंगा एक दिन,

खो कर मुझ को बहुत पछताएगी सनम तु,
वफा ऐसी तुझ से कर जाऊंगा एक दिन,


ऐसी दिवानगी से चाहूंगा तुझको,
भूल जाओगी तुम भी सारा जहान एक दिन,

जान तेरी भी लबों पर आ जाएगी,
बन के खाक जब मैं मिट्टी में मिल जाऊंगा एक दिन।

सोमवार

समुद्र की लहरें


समुद्र की लहरें
कितने जोश में
कितने वेग से
चली आतीं हैं
इतराती, मंडराती
किनारे की ओर।
और रह जातीं हैं
अपना सर फोड़कर
किनारे की चट्टानों पर।
लहर ख़त्म हो जाती है
रह जाता है-
पानी का बुलबुला
थोड़ा-सा झाग।
लहरें निराश नहीं होतीं
हार नहीं मानतीं।
चली आती हैं
बार-बार, निरंतर, लगातार
एक के पीछे एक।
एक दिन सफल होती हैं
तोड़कर रख देती हैं
भारी भरकम चट्टान को
पर फिर भी शांत नहीं होतीं
आराम नहीं करतीं।
इनका क्रम चलाता रहता है।
चट्टान के छोटे-छोटे टुकड़े कर
चूर कर देतीं हैं-
उनका हौसला, उनके निशान।
बना कर रख देतीं हैं
रेत
एक बारीक महीन रेत
समुद्र तट पर फैली
एक बारीक महीन रेत।

मज़ा आ रहा था उन्हें

परखते रहे वो हमें सारी ज़िन्दगी,
हम भी उनके हर इम्तेहान में पास होते रहे,
मज़ा आ रहा था उन्हें हमारी आंसुओं की बारिश में,
हम भी उनके लिए बिना रुके रोते रहे,
बेदर्द थे वो कुछ इस क़दर,
... नींद हमारी उड़ा कर खुद चैन से सोते रहे,
जिन्हें पाने के लिए हमने सब कुछ लुटा दिया,
वो हमें हर कदम पर खोते रहे,
एक दिन हुआ जब इसका अहसास उन्हें,
वो हमारे पास आकर पूरे दिन रोते रहे,
और हम भी खुदगर्ज़ निकले यारों,
के आँखे बंद करके कफ़न में सोते रहे.....

आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.

मेरे गीतों को होठों से छू लो जरा

ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.

वक़्त बे वक़्त यूँ ना लो अंगड़ाइयां, देखने वाला बेमौत मर जायेगा.


होंठ तेरे गुलाबी ,शराबी नयन.

संगमरमर सा उजला है , तेरा बदन.

रूप यूँ ना सजाया - संवारा करो, टूट कर आईना भी बिखर जायेगा.

ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.

सारी दुनिया ही तुम पर, मेहरबान है.

देख तुमको फ़रिश्ते भी, हैरान हैं.

मुसकुरा कर अगर तुम इशारा करो , आदमी क्या - खुदा भी ठहर जायेगा.

ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.

तुम तसव्वुर की रंगीन, तस्वीर हो .

सच तो ये है कि लाखों कि, तकदीर हो.

मेरे गीतों को होठों से छू लो जरा, खुद ब खुद भाव उनका निखर जायेगा.

ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.


बुधवार


भोजपुर  जिला  का  इतिहास  बड़ा  ही  गौरवर्पूर्ण रहा  है यहाँ चप्पे -चप्पे पर इतिहास के पांवो के निशान कायम है इतिहास के पन्नों पर गौर करें तो महर्षि जनक,महर्षि विश्वामित्र,पुरुषोत्तम राम लक्ष्मण ,तिर्थकर महावीर ,गौतम बुध मैगास्थनीज़,फाहियान,ह्वेनसांग,सम्राट अशोक शेरशाह सुरी .गुरु गोविन्द सिंह ,पाण्डवों समेत अन्य एतिहासिक धार्मिक व  राजनैतिक व्यक्तियों  का यहाँ पदार्पण हो चुका है यहाँ निरन्तर सृजनात्मक व सामाजिक गतिविधियाँ जनसमुदाय के बीच विभिन्न  कार्यक्रमों के माध्यम से होती रही है पर अजीब विडंबना है इस जिला के प्रमुख शहरों व रेलवे स्टेशनों की........... जहां, दर्जनों की संख्या में कई माह व वर्षों से गुमनामी की खामोशी भरी ज़िन्दगी जिने के लिए मजबूर है कई अबलाये...... कभी भूख, गर्मी, चिलचिलाती धुप, लू के थपेड़ों, बरसात का कहर तो कभी जाड़े के दिनों में रूह कंपा देने वाली कडाके की ठंढ को बर्दाश्त करते हुए ,कहाँ घर है, कहाँ हम हैं, कौन माँ-बाप है, क्या नाम है, तक की याद नहीं  शरीर पर शर्म या वस्त्र है की नहीं इसकी फिक्र नहीं,फिर भी जिन्दा लाश बनके जिने की विवशता....

                                                                    राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिकर ने कहा था की नारि तुम श्रद्धा हो विश्वास की  शाम  की सूर्यास्त होते  ही अर्धविक्षिप्त नारियों व युवतियों के साथ हवस के दरिंदों की हैवानियत को आँखों के सामने देखने वाली पुलिस व प्रशाशन क्यूँ कुछ भी कहने व करने से कतरा रही है ? गुमनाम नारियों की आबरू को तार तार करते व उनके शरीर पर लगे दाग तथा खून लगे कपड़ों से सहज अनुमान लगाया जा सकता है की रात  के अँधेरे में इनके साथ क्या किया  जाता है ! इसके बावजूद भी अपनी मानसिक संतुलन खो चुकी ये अबलायें सब   कुछ सहन   करने के बाद भी खामोश   रहती हैं ! यहाँ   तक की कुछ युवतियां   समय   से काफी   पहले   ही गर्भवती   हो   जमाने  की यातना   सहने   को विवश   है  ! दिसंबर   2009  में सामाजिक  अधिकारिता   मंत्रालय   के जारी आदेश पर बिहार सरकार  के मुख्य   सचीव   द्वारा राज्य के सभी   जिलाधिकारियों   को पत्र भेजकर भीख मांगकर गुजारा करने वालों ,फूटपाथ पर रात गुजारने वालों ,निः शक्त लोगों ,अर्धविक्षिप्त लोगों  को चिन्हित कर पुनर्वास योजना के तहत बेहतर इलाज़ ,रोजगार की व्यवस्था परिजनों तक पहुंचाने व खान पान दवा आदि की व्यवस्था सुनिश्चित किये जाने का फरमान जनवरी 2010 में  जारी किया गया था !
                                                                     जारी फरमान में इस मामले में सामाजिक संगठनों का भी सहयोग लिए जाने की चर्चा की गयी थी !वहीँ सामाजिक कल्याण विभाग की मंत्री परवीन अम्मानुल्लाह  ने उक्त प्रकरण में कल्याणकारी योजना के तहत हर तरह की सुविधा मुहैया कराने सम्बन्धी मंजूर प्रस्ताव से अवगत  कराया था और हर सुविधा मुहैया  कराने की बात भी कही थी
इसके वावजूद भी इस जिले की आरा ,बिहियां व  पिरो रेलवे स्टेशन सहित जगदीशपुर आरा बिहिया पिरो सन्देश गड़हनी  कोइलवर बडहरा और हसनबाज़ार के बाज़ारों में सड़कों पर दिन रात विचरण करने वाली इन नारियों को देखने के बाद भी प्रशाशन के अधिकारियों की आँखों से ये सब कुछ दिखाई क्यूँ नहीं देता है क्या सही में दीखाई नहीं देता या देखकर भी नहीं देखना चाहते है 
संवेदन शून्य पुलिस व प्रशाशन की आँखों के सामने जिले के प्रमुख शहरों व रेलवे स्टेशनों में दर्जनों अर्धविक्षिप्त नारियों व युवतियों को बहसी दरिंदों द्वारा कब तक हवस का शिकार बनाया जाता रहेगा ? केंद्र व राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश इनके लिए कब तक लागू किये जायेंगे ? इन सवालों का जवाब देने वाला कोई नहीं है आखिर क्यूँ ?
  

प्यार की भाषा 
कोशिश करना तुम्हारे बाद ये भाषा ख़त्म हो जाए 
इन दिनों सांस तभी चलती है जब पेंसिल अंगुलियाँ रिवाल्भ करतीं है! 
मुझे प्रेम से पीछे और इसके आगे कोई सभ्यता, कोई गली, कोई प्रथा नजर नहीं आती 
तुम जब चाहो मेरे दिल के 52 पत्ते गिन लो दोस्तों में बटा हुआ भी साबुत हूँ मैं, 
मुझे आज भर फुर्सत है कल मुझे मरने का भी वक़्त नहीं, चलते चलते मैं कहीं 
अपने पाँव गिरा बैठा हूँ ! मुझे छुओ गूंगे की तरह मुझे चख लो धरती पर चखे गए सबसे पहले फल की तरह 
मैं प्यार  से लबालब हूँ प्यार का प्यासा, नहीं मालुम है मुझे प्यार की परिभाषा, 
कम दिन हूँ इधर मेरे होने का शोर बहुत है ...मुझे ख्वाहिश भी नहीं मेरे जाने के बाद लोग मुझे समझे 
तुम कोशिश करना तुम्हारे बाद ये भाषा ख़त्म हो जाए