बुधवार


प्यार की भाषा 
कोशिश करना तुम्हारे बाद ये भाषा ख़त्म हो जाए 
इन दिनों सांस तभी चलती है जब पेंसिल अंगुलियाँ रिवाल्भ करतीं है! 
मुझे प्रेम से पीछे और इसके आगे कोई सभ्यता, कोई गली, कोई प्रथा नजर नहीं आती 
तुम जब चाहो मेरे दिल के 52 पत्ते गिन लो दोस्तों में बटा हुआ भी साबुत हूँ मैं, 
मुझे आज भर फुर्सत है कल मुझे मरने का भी वक़्त नहीं, चलते चलते मैं कहीं 
अपने पाँव गिरा बैठा हूँ ! मुझे छुओ गूंगे की तरह मुझे चख लो धरती पर चखे गए सबसे पहले फल की तरह 
मैं प्यार  से लबालब हूँ प्यार का प्यासा, नहीं मालुम है मुझे प्यार की परिभाषा, 
कम दिन हूँ इधर मेरे होने का शोर बहुत है ...मुझे ख्वाहिश भी नहीं मेरे जाने के बाद लोग मुझे समझे 
तुम कोशिश करना तुम्हारे बाद ये भाषा ख़त्म हो जाए    

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